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Book
I published the autobiography of my Great Grand Father earlier this year. It is available to read for free on Google Play Books - Link.
Here are few excerpts -
“इस दुनिया में इंसान के दिन कभी भी एक से नहीं रहते हैं।”
“मैंने अपने जीवन में कभी बाहर का बना कपड़ा नहीं पहना। जबसे साहब जी महाराज ने कपड़े का कारखाना यहाँ पर बनवाया तबसे अब तक मैं दयालबाग के ही कपड़े पहनता आया हूँ। एक गरम बनियान जो मुझे गुरदास दी थी, वह, और एक गरम कोट जो मुझे दुर्गा ने बनवा कर दिया था इसके अतिरिक्त मैंने कोई भी बाहर का कपड़ा नहीं पहना।”
“राधास्वामी दयाल की दया से मेरे आठ लड़के हुए। मेरी माता ने पहले लड़के मोहनलाल का मुंडन अपने हाथों कराया था और सभी रिश्तेदारों को खाना खिलाया था। परन्तु उनके मरने के बाद मैंने अपने किसी भी लड़के का मुंडन नहीं कराया। मैं नाई को बुलवा कर उनके बाल कटवा लेता था और साथ में एक रुपया और चार लड़डू दे देता था। मैंने कभी भी अपने किसी लड़के के जन्मदिन में कोई दावत आदि नहीं दी। क्योंकि मेरा विचार था कि आदमी की रूह जिस मालिक के पास से आती है, उसके मरने के बाद पुनः वहीं वापिस चली जाती है। अतः जब उसके आने पर एक तरफ खुशी मनाई जाती है तो दूसरी तरफ उसके मरने पर गम क्यों होता है? अतः मेरा कहने का भाव यह है कि आदमी को सामान्य रहना चाहिए। जो आता है वह जाता भी है।”
“इंसान को हर एक काम करना चाहिए उसमे शर्म नहीं करनी चाहिए ।”
Enjoy reading and do leave a review on the book store.
Best, Umang